वो दूर ढलते सूरज के लाल आसमान में
वो नीले सागर के अपने से सन्नाटे में
वो लौट कर आती कश्तियों में
वो घर जाते पंछियों के चहचहाने में
कुछ खास है इस शहर में, कुछ खास है इस शहर में
वो खुद में खोये हज़ारों शख्सों में
वो एक दूसरे में संसार पाए चन्द रूहों में
वो अचानक से बारिश की पड़ती बूंदों में
वो हवा के बालों को छूकर चले जाने में
वो हाथ छुडाते वीराने में, उस गले लगाते अपनेपन में
कुछ खास है इस शहर में, कुछ खास है इस शहर में
वो ऊँचे ऊँचे मकानों में दूसरों से बेपरवाह ज़िन्दगियों में
वो सबसे बड़ी झुग्गी का तमगा पाए लाखों उम्मीद भरी अंखियों में
वो रफ़्तार से सामंजस्य बिठाने में डूबे हताश कोशिशों में
वो हज़ारों के जवाब ना पा सके उन लाखों सवालों में
इस अफसानों के शहर में, इन अनजानों के शहर में
कुछ खास है इस शहर में,कुछ तो खास है इस शहर में