Tuesday, August 15, 2017

ठहर जाओ

इस तमस में तुम मेरे चिराग हो, ओ ध्रुव, रुक जाओ
थोड़ी दूर और है जाना, ऐ चंद्र, अभी ना रोशनी बुझाओ
दिख रहा है मेरा घर अब, थोड़ा साथ निभाओ
पांव थक गए हैं, आंखें बंद होने तक हौसला बढ़ाओ।

कि सुबह के सूर्य के आवेश को झेल ना पाऊंगा
तुम्हारे स्निग्ध स्पर्श की आदत है, जल जाऊंगा
चंद कदम हैं बचे, एक कहानी में सफर काट जाऊंगा
जो तुम चले गए तो किसे फिर ये सुनाऊंगा।

ऐ निशा, ज़रा और पिला अपना सोम, रोक ले इन्हें
ओ इंद्रदेव, ज़रा बादलों में जकड़ लो इन्हें
मेरे सफर की आखिरी घड़ी में मुझे छोड़ ना जाएं
मेरे पांव मंज़िल से कुछ पग दूर ही ना थम जाएं।

-- साकेत