यादों की चादर में आज लिपटने का मेरा मन हुआ
उन एहसासों को जिन्हें भूल चुका था
या भूलने की कोशिश कर रहा था
आज उन्हें फिर से महसूस करने का मन हुआ
कुछ जादू सा तो है इसमें कि
हर बार इसे अपने से दूर किसी कोने में फ़ेंक
भूल जाता हूँ इसका वजूद
पर खींच लाती है मुझे हर बार अपने पास
कुछ तो जादू सा है इसमें ख़ास
देखता हूँ बचपन में वो भाई से झगड़ना
चेहरे पर दाग आज भी उसकी याद दिलाते हैं
वो पापा का डांटना और कभी कभी गालों पर चांटे
माँ का नाराज़ होकर बात ना करना, मौन धारण करना
वो पहला एहसास कि किसी का बात न करना, दूर चले जाना
भी कितना दर्द दे सकता है
इन सब पर कितना गुस्सा आता था तब
और ज़ाहिर भी हो जाती थी सारी भावनाएं मुझसे
आज देखता हूँ खुद को, कितना शांत सभी समझते हैं मुझे
दिखती नहीं है सबको, एक चिंगारी सी है जो जल रही है
इस गुस्से की वजह क्या है, किस से है ये नाराज़गी, मुझे भी पता नहीं
पर कितनी भी कोशिश करूँ, यह ज्वालामुखी तो फूटता ही नहीं
चादर के कुछ टुकड़े देखे जो कटे हुए गिरे थे वहीँ
आश्चर्य हुआ कि मैंने तो ऐसा कुछ किया ही नहीं
सोच में पड़ गया, कोई गलती मेरे से हुई थी क्या कहीं
जब गौर से देखा तो पाया कि ये तो वो थे
जो बिना बताये, अचानक ही गायब हो गए ज़िन्दगी से
उनके निशान धुंधले पड़ने लगे थे
चादर पर छाप हलकी होने लगी थी
इन टुकड़ों को सहेज कर रखना होगी अब एक कठिन परीक्षा
क्यूंकि इन्हें अब जोड़ना नामुमकिन सा है,
गर खो गए ये मेरे हाथों से कहीं,
ये हो जाएगी ज़िन्दगी भर की सज़ा
अचानक नज़र पड़ी वहां, कुछ जला हुआ सा देखा
एक टीस दिल में उठी, पर चेहरे पर मुस्कराहट थी
भूल तो थी पर इसका कोई पछतावा नहीं है मुझे
वो आग मैंने ही लगायी थी वहां
कुछ हमेशा के लिए मिटाने की चाहत थी
पर खुद को इजाज़त दे नहीं पाया
हाथों को जला कर उन निशानों को मिटने से बचाया
आज वो भी मुझे पागल कहते हैं और देख कर मुस्कुराते हैं
हाथ फिर से ना जल जाये, ये मुझे हमेशा याद दिलाते हैं
चारों ओर बिखरा हुआ पाया जब देखा
कुछ अधूरे ख्वाब, कुछ टूटी ख्वाहिशें
कहीं बिलकुल पास आकर हार जाने का दर्द
कहीं दूर दूर तक मंजिल के भी ना रहने का गम
हर उस हार ने झटका दिया, मुझे कहीं ना कहीं कमज़ोर किया
पर हर बार गिरने पर दुबारा उठने की मेरी तमन्ना ने
कभी हार कर भी मुझे हारने ना दिया
हाथ फेरते हुए अचानक कुछ गर्माहट का एहसास हुआ
चेहरे पर हंसी लौट आई, जैसे ही उनका ख्याल हुआ
उन चेहरों के बारे में सोच कर ही दिल खुशियों से भर उठा
याद आई उनकी तो आँखों में आंसू भी छलक आये
वो स्कूल जिसे हम क्लब कहते थे
जहाँ बचपन बीता और बड़े हुए, समझदार बने
जहाँ कितनी ही शरारतें की, शरारतों की सज़ा भी पाई
झगड़े, मन-मुटाव होते थे पर पल भर में भूल जाते थे
हँसते थे, खिलखिलाते थे, एक दूसरे के साथ मज़ाक करते हुए
पता भी नहीं चला कब ज़िन्दगी ने भी मज़ाक कर दिया
उस एक नदी में साथ बहती सारी नावों को
अलग अलग दिशाओं में मोड़ दिया
वो आखिरी दिन सबसे बिछुड़ जाना
आँखें आज भी नम हो जाती हैं
जब याद आता है वो गुज़रा ज़माना
दिखते है फिर वो जिनके सहारे इस दर्द को कम किया
कुछ के संग दर्द को बांटा
और सभी ने फिर से हँसना सिखा,
उस गम के साथ जीना सिखा दिया
नए थे वो हमारी ज़िन्दगी में कभी
बहुत जल्द उसका हिस्सा बन गए
हँसते, हंसाते, एक दूजे को धीरे धीरे जानते हुए
एक झटके से अचानक ही सब ख़त्म हो गया
पंख पसारे समय भी कितनी जल्दी उड़ गया
मालूम था कि इतने ही वक़्त का होगा हमारा साथ
पर ये लालची मन तो हमेशा ही थोड़ा और चाहता है
कुछ और पलों की हमारी ख्वाहिश को नकारते हुए
फिर से वक़्त ने उसी चौराहे पर हमें लाकर खड़ा कर दिया
जहाँ से सबके कदम मेरे साथ तो ना रहे, और भी दूर होते गए सब
बहुत रोना आया पर वो भी न कर सके
कमबख्त वादा करना महंगा पड़ गया
बिछुड़ने का दर्द तो था पर
अब तो दर्द सहने और गम को भूलने की आदत सी पड़ चुकी थी
तो ऐसा ही सोच अपने दिल को यह मानने को मजबूर कर दिया
कि कुछ भी नहीं बदला, सब कुछ है वही
सारे धागे आज भी जुड़े हैं, बंधन हैं वही
नजदीकियां आज भी हैं; भले पास, अपने साथ हो कोई नहीं
और कदम बढ़ते रहे एक अनजानी मंज़िल की ओर
कोशिशें ज़ारी रहीं उस मुकाम को हासिल करने की
आज एक तट पर ठहरी है ये ज़िन्दगी की नाव
फिर से उतरेगी ये उन लहरों से लड़ने को
क्या पायेगी ये अपना किनारा जिसे हमेशा ढूंढ रही थी
इसका तो किसी को भी पता नहीं
पर मेरी यादों की चादर
कुछ खट्टी, कुछ मीठी यादों के धागों से
कुछ ख़ूबसूरत लम्हों के सुनहरे रंगों से
कुछ बुरे पलों की स्याही से भरी जाएगी
और बुनती हुई बड़ी होती जाएगी
पता नहीं कितनी बार इसे मैं दूर कर दूंगा खुद से
पता नहीं कितनी बार इसमें खुद को लपेटकर
गर्माहट महसूस करूंगा, रिश्तों की, उन यादों की,
जो कितना भी वक़्त बीत जाए, रहेंगे हमेशा वैसे ही........
S.R.