Tuesday, December 18, 2012

डरता है

अंधेरों में छुपे साये सा अस्तित्व
जो रौशनी में आने को तरसता है पर अपने ही अकेलेपन से डरता है
आँखों में बंद उस सपने सा कोमल
जो  सच का उजाला देखना चाहता है पर आँखें खुलने से डरता है
दिनकर के सातवें अश्व सा निरंतर चलन्त
जो सांस लेना चाहता है पर जिसके रुकने से संसार भी डरता है
चेहरे पर पड़े वो अधूरे सच के नकाब सा व्यक्तित्व
जो निकाल फेंकना चाहता है पर पूरे सच से डरता है
यादों की संदूक में बंद उन चुभती कीलों सा कठोर
जिन्हें मिटा देना तो चाहता है पर उन स्निग्ध स्मृतियों को खोने से डरता है

जो जानता और समझता है कि क्या है उस पार
जिसे उस जन्नत की हकीक़त मालूम है

लेकिन...

दिल को समझाने को ये खयाल भी क्या कम अच्छा है ..





प्रेरणा --


"हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन,

दिल को समझाने को ग़ालिब ये ख्याल अच्छा है "
                                                                              ---------मिर्ज़ा ग़ालिब

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