Monday, September 06, 2010

यादों की चादर

यादों की चादर में आज लिपटने का मेरा मन हुआ
उन एहसासों को जिन्हें भूल चुका था
या भूलने की कोशिश कर रहा था
आज उन्हें फिर से महसूस करने का मन हुआ
कुछ जादू सा तो है इसमें कि
हर बार इसे अपने से दूर किसी कोने में फ़ेंक
भूल जाता हूँ इसका वजूद
पर खींच लाती है मुझे हर बार अपने पास
कुछ तो जादू सा है इसमें ख़ास

देखता हूँ बचपन में वो भाई से झगड़ना
चेहरे पर दाग आज भी उसकी याद दिलाते हैं
वो पापा का डांटना और कभी कभी गालों पर चांटे
माँ का नाराज़ होकर बात ना करना, मौन धारण करना
वो पहला एहसास कि किसी का बात न करना,  दूर चले जाना
भी कितना दर्द दे सकता है

इन सब पर कितना गुस्सा आता था तब
और ज़ाहिर भी हो जाती थी सारी भावनाएं मुझसे
आज देखता हूँ खुद को, कितना शांत सभी समझते हैं मुझे
दिखती नहीं है सबको, एक चिंगारी सी है जो जल रही है
इस गुस्से की वजह क्या है, किस से है ये नाराज़गी, मुझे भी पता नहीं
पर कितनी भी कोशिश करूँ, यह ज्वालामुखी तो फूटता ही नहीं

चादर के कुछ टुकड़े देखे जो कटे हुए गिरे थे वहीँ
आश्चर्य हुआ कि मैंने तो ऐसा कुछ किया ही नहीं
सोच में पड़ गया, कोई गलती मेरे से हुई थी क्या कहीं 
जब गौर से देखा तो पाया कि ये तो वो थे
जो बिना बताये, अचानक ही गायब हो गए ज़िन्दगी से
उनके निशान धुंधले पड़ने लगे थे
चादर पर छाप हलकी होने लगी थी
इन टुकड़ों को सहेज कर रखना होगी अब एक कठिन परीक्षा
क्यूंकि इन्हें अब जोड़ना नामुमकिन सा है,
गर खो गए ये मेरे हाथों से कहीं,
ये हो जाएगी ज़िन्दगी भर की सज़ा

अचानक नज़र पड़ी वहां, कुछ जला हुआ सा देखा
एक टीस दिल में उठी, पर चेहरे पर मुस्कराहट थी
भूल तो थी पर इसका कोई पछतावा नहीं है मुझे
वो आग मैंने ही लगायी थी वहां
कुछ हमेशा के लिए मिटाने की चाहत थी
पर खुद को इजाज़त दे नहीं पाया
हाथों को जला कर उन निशानों को मिटने से बचाया
आज वो भी मुझे पागल कहते हैं और देख कर मुस्कुराते हैं
हाथ फिर से ना जल जाये, ये मुझे हमेशा याद दिलाते हैं

चारों ओर बिखरा हुआ पाया जब देखा
कुछ अधूरे ख्वाब, कुछ टूटी ख्वाहिशें
कहीं बिलकुल पास आकर हार जाने का दर्द
कहीं दूर दूर तक मंजिल के भी ना रहने का गम
हर उस हार ने झटका दिया, मुझे कहीं ना कहीं कमज़ोर किया
पर हर बार गिरने पर दुबारा उठने की मेरी तमन्ना ने
कभी हार कर भी मुझे हारने ना दिया

हाथ फेरते हुए अचानक कुछ गर्माहट का एहसास हुआ
चेहरे पर हंसी लौट आई, जैसे ही उनका ख्याल हुआ
उन चेहरों के बारे में सोच कर ही दिल खुशियों से भर उठा
याद आई उनकी तो आँखों में आंसू भी छलक आये
वो स्कूल जिसे हम क्लब कहते थे
जहाँ बचपन बीता और बड़े हुए, समझदार बने
जहाँ कितनी ही शरारतें की, शरारतों की सज़ा भी पाई
झगड़े, मन-मुटाव होते थे पर पल भर में भूल जाते थे
हँसते थे, खिलखिलाते थे, एक दूसरे के साथ मज़ाक करते हुए
पता भी नहीं चला कब ज़िन्दगी ने भी मज़ाक कर दिया
उस एक नदी में साथ बहती सारी नावों को
अलग अलग दिशाओं में मोड़ दिया
वो आखिरी दिन सबसे बिछुड़ जाना
आँखें आज भी नम हो जाती हैं
जब याद आता है वो गुज़रा ज़माना

दिखते है फिर वो जिनके सहारे इस दर्द को कम किया
कुछ के संग दर्द को बांटा
और सभी ने फिर से हँसना सिखा,
उस गम के साथ जीना सिखा दिया
नए थे वो हमारी ज़िन्दगी में कभी
बहुत जल्द उसका हिस्सा बन गए
हँसते, हंसाते, एक दूजे को धीरे धीरे जानते हुए
एक झटके से अचानक ही सब ख़त्म हो गया
पंख पसारे समय भी कितनी जल्दी उड़ गया
मालूम था कि इतने ही वक़्त का होगा हमारा साथ
पर ये लालची मन तो हमेशा ही थोड़ा और चाहता है
कुछ और पलों की हमारी ख्वाहिश को नकारते हुए
फिर से वक़्त ने उसी चौराहे पर हमें लाकर खड़ा कर दिया
जहाँ से सबके कदम मेरे साथ तो ना रहे, और भी दूर होते गए सब
बहुत रोना आया पर वो भी न कर सके
कमबख्त वादा करना महंगा पड़ गया
बिछुड़ने का दर्द तो था पर
अब तो दर्द सहने और गम को भूलने की आदत सी पड़ चुकी थी
तो ऐसा ही सोच अपने दिल को यह मानने को मजबूर कर दिया
कि कुछ भी नहीं बदला, सब कुछ है वही
सारे धागे आज भी जुड़े हैं, बंधन हैं वही
नजदीकियां आज भी हैं; भले पास, अपने साथ हो कोई नहीं

और कदम बढ़ते रहे एक अनजानी मंज़िल की ओर
कोशिशें ज़ारी रहीं उस मुकाम को हासिल करने की
आज एक तट पर ठहरी है ये ज़िन्दगी की नाव
फिर से उतरेगी ये उन लहरों से लड़ने को
क्या पायेगी ये अपना किनारा जिसे हमेशा ढूंढ रही थी
इसका तो किसी को भी पता नहीं
पर मेरी यादों की चादर
कुछ खट्टी, कुछ मीठी यादों के धागों से
कुछ ख़ूबसूरत लम्हों के सुनहरे रंगों से
कुछ बुरे पलों की स्याही से भरी जाएगी
और बुनती हुई बड़ी होती जाएगी

पता नहीं कितनी बार इसे मैं दूर कर दूंगा खुद से
पता नहीं कितनी बार इसमें खुद को लपेटकर
गर्माहट महसूस करूंगा, रिश्तों की, उन यादों की,
जो कितना भी वक़्त बीत जाए, रहेंगे हमेशा वैसे ही........


S.R.

5 comments:

suvra said...

Ok...lemme take a moment 2 b happy 2 t 1st one 2 comment!!yeahhhhhhhhhhh!!!!

someone who has seen u up n' close,there r few transitions of self i've witnessed so far in u.u've alwez been t quiet,cool minded person.ok cool it might not be.u've rather been t one more vulnerable 2 ur anger easily than others....bt silence has been ur greatest virtue.
wat this poem reminds me of more,are t times wen i used 2 cry clutching t phone talking wit u back at bokaro.i was selfish,still want more time 2 spend wit u,afraid if 2mrw will never come....
i've missed u...in the past 5 yrs,wenevr u weren't around...n' i miss u now.am not reminded of nything else,not 22 yrs in flashback..bt only flashing moments in complete hated loneliness witout u by my side..

Unknown said...

@saket : sahi hai.. waise yaado ki chadar thodi purani ho gayi hai .. use Pensive ( Suvra should understand this )

Saket Ranjan said...

@subhra : i am at a loss of words to say anything to you in response to the overwhelmingly emotional stuff you told me. Makes my nostalgia grow now in an exponential way. take care buddy. May you never feel lonely ever and i just hope you never cry again and have much more in life to remember than think about me.

@venki : purani hone se kya hua dost. it provides more warmth than it used to give when new. The word pensive wud have found its way in here if the post wud have been in english.

Siddhartha said...

Ohhh Saket....How in the world had i missed this one...meri hindi mein knowledge toh limited hai lekin is poem ke emotions aur depth of feelings...mar gayi dost...The innocence of my school days and the bliss of college...where have those days gone.....This is one of your best works buddy...keep writing...

Saket Ranjan said...

@sid : waise hindi to meri bhi achhi nahi hai. this i realise whenever i talk to people who hail from up, hp and such places. but then yeah, i can write. and anyway, you people liked it (rather it was a more than expected compliment), and that's good enough for me. thanks for the wonderful response... i'm not being formal but just courteous. i'll keep writing, frequency has decreased but still, i believe, the pen and mind can work together for me and that's a big satisfaction for me.