Friday, September 28, 2012

इस शहर में

वो दूर ढलते सूरज के लाल आसमान में
वो नीले सागर के अपने से सन्नाटे में
वो लौट कर आती कश्तियों में
वो घर जाते पंछियों के चहचहाने में
कुछ खास है इस शहर में, कुछ खास है इस शहर में

वो खुद में खोये हज़ारों शख्सों में
वो एक दूसरे में संसार पाए चन्द रूहों में
वो अचानक से बारिश की पड़ती बूंदों में
वो हवा के बालों को छूकर चले जाने में
वो हाथ छुडाते वीराने में, उस गले लगाते अपनेपन में
कुछ खास है इस शहर में, कुछ खास है इस शहर में

वो ऊँचे ऊँचे मकानों में दूसरों से बेपरवाह ज़िन्दगियों में
वो सबसे बड़ी झुग्गी का तमगा पाए लाखों उम्मीद भरी अंखियों में
वो रफ़्तार से सामंजस्य बिठाने में डूबे हताश कोशिशों में
वो हज़ारों के जवाब ना पा सके उन लाखों सवालों में
इस अफसानों के शहर में, इन अनजानों के शहर में
कुछ खास है इस शहर में,कुछ तो खास है इस शहर में

2 comments:

suvra said...

1st.
वो हज़ारों के जवाब ना पा सके उन लाखों सवालों में
इस अफसानों के शहर में, इन अनजानों के शहर में....
great lines for a city u so love.
loved it.

Sidharth said...

badhiya hai.. ab mujhe poora yakeen ho gaya hai ki tu MBA nahi kar raha hai..