जब शिथिल, मुर्दे समान पड़ा भी कहे कि वो वीर है,
तब संयम भी क्यूँ न तोड़ मर्यादा की बाँध अधीर हो
जब धुंध की काली चादर फैला आग लगाने वाला कहे वो बलवान है,
तब उम्मीद का दिया जलाने वाले की वेदना क्यूँ न ज़ाहिर हो
जब वस्त्र पर रक्त की लालिमा की गहराई, कहलाने को शौर्य का प्रमाण हो;
तब घाव पर मरहम लगाता वो वैद्य, मानो तो इन अमीरों के संसार का फ़क़ीर हो
तब संयम भी क्यूँ न तोड़ मर्यादा की बाँध अधीर हो
जब धुंध की काली चादर फैला आग लगाने वाला कहे वो बलवान है,
तब उम्मीद का दिया जलाने वाले की वेदना क्यूँ न ज़ाहिर हो
जब वस्त्र पर रक्त की लालिमा की गहराई, कहलाने को शौर्य का प्रमाण हो;
तब घाव पर मरहम लगाता वो वैद्य, मानो तो इन अमीरों के संसार का फ़क़ीर हो
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