Saturday, August 31, 2013

एक ऐसी रात में

इन खामोश सी रातों में, जब झींगुर की आवाज़ भी कानों को चुभती है
जब बादलों से भरे आकाश में तारे लुका छुपी खेलते हैं 
जब अँधेरे का स्याह रंग मन की वीरानियों को भरता जाता है 
जब अकेले बैठे,  हथेली में थामी कलम अनायास ही पन्नों पर चल पड़ती है 
पर लिख न पाती वो जो लिखने को उठी थी 
थोड़ी रूकती है, लिखाई टूट जाती है 
जाने क्यूँ भरी हुई स्याही सूख जाती है 
और मैं  ढूंढ ना पाता कोई दूसरा, कागज़ फाड़ देता हूँ 
इक अधूरी कविता से अच्छा तो नहीं है उसका अस्तित्व होना 

इक ऐसी अँधेरी रात में, कमरे के कोने में पड़े 
वो शब्द चमकते हैं, हर एक में अक्स है मेरा
मानो आईने के टुकड़ों में हज़ार शख्सियत हैं 
उन्ही सितारों की तरह जिनका आसमा एक ही है

No comments: